सामाजिक सरोकार

(अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस : 01 मई) – यूॅं बना लाल झंडा मजदूर वर्ग की पहचान

उदय राम ममगाईं

सन् 1886 में शिकागो के मजदूरों ने काम के घण्टे 8 करने की मांग को लेकर जो शहादत दी थी, इसी शहादत को दुनिया भर में मजदूर वर्ग द्वारा 1 मई को मजदूर दिवस के रूप मे मनाकर अपनी एकजुटता का इजहार किया जाता है। 1मई 1886 मे पूंजीपतियों के इशारे पर शिकागो की पुलिस के बर्बर दमन से जब अनेक मजदूर खून से सन गये व बुरी तरह जख्मी हुये तब यहीं से लालझंडे का जन्म हुआ जो आगे चलकर मजदूर वर्ग की पहचान बना।

शिकागो से पूर्व पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों से समय सीमा को तरकिनार कर ज्यादा से ज्यादा काम लिया जाता था। इस तानाशाही से मजदूर वर्ग नाखुश था और किसी न किसी रूप में उन्होंने इस बर्बरता का प्रतिरोध करना शुरू किया। मजदूरों के नेतृत्व ने आठ घण्टे काम, आठ घंटे आराम तथा आठ घण्टे मंनोरंजन के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना शुरू किया। शिकागो की घटना ने विश्व पूंजीवाद को हिलाकर रख दिया। कार्यस्थल पर पहले के मुकाबले कम घण्टे हुऐ जो मजदूरों की जीत थी।

वर्तमान परिवेश की बात की जाए तो भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में आज मजदूर वर्ग गम्भीर चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है। शहादत से हासिल उनके अधिकारों पर निरन्तर कुठाराघात हो रहा है। कोविड संक्रमण की आड़ में भारत सहित विश्व में मजदूर वर्ग गम्भीर संकट से गुजर रहा है। विश्व में समाजवादी खेमा चीन, वियतनाम ,क्यूबा, कोरिया आदि देश ही अपने देश की अर्थव्यवस्था को बचा पाये हैं। इसका मुख्य कारण वहां की सरकारों की सुनियोजित योजना है। कोविड की आढ़ में हमारे देश की मौजूदा सरकार ने श्रमिकों के खिलाफ जो कानून पास किये हैं उनमें से काम के 8 घण्टे से बढ़ाकर 12 करना, कार्यस्थल पर सोशल डिस्टेशिंग के नाम पर श्रमिकों की संख्या कम करने के साथ ही श्रम कानूनों का निलंबन करना और स्थायी रोजगार की गारन्टी खत्म करना पूंजीपतियों के हितों से की गई सांठगांठ कहना कतई गलत न होगा।

कहा जाता है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। एक बार फिर से श्रमविरोधी नीतियों के खिलाफ देश का श्रमिक वर्ग एकजुटता के साथ संघर्ष कर रहा है। आज का श्रमिक दिवस निश्चित तौर पर श्रमिकों की एकजुटता के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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