उत्तराखंड

हिंदी के प्रयोग में हो ईमानदारी, रस्म अदायगी नहीं : ऊषा

देहरादून। सीएसआईआर-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून में एक सितंबर से संचालित हिंदी माह की गतिविधियों का समापन हो गया। समारोह की मुख्य अतिथि, हिंदी साहित्यकार ऊषा वाधवा ने अपने हिंदी सीखने से लेकर हिंदी लेखन में सक्रिय होने की यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने 1914 में ही कहा था कि हिंदी जन-मानस की भाषा है, इसका विश्व में तीसरा स्थान है। इसके प्रयोग में ईमानदारी होनी चाहिए, मात्र रस्म अदायगी नहीं।

साहित्यकार ऊषा वाधवा ने कहा कि हिंदी भाषा एक बहती हुई नदी है, जो सभी को समेट कर चलती है। विदेशी व देशी भाषाओं की शब्दावली से समृद्ध होकर हिंदी अपने आधुनिक रूप में है। समय के साथ-साथ तकनीक के विस्तार से इसमें परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि तकनीकी शब्दों का अनुवाद न कर इन्हें जस-का-तस अपनाया जाना चाहिए। खिचड़ी भाषा से बचकर भाषा का शुद्ध रूप अपनाया जाना चाहिए। अपनी भाषा का सम्मान आवश्यक है, क्यों कि भाषा के साथ संस्कृति भी चलती है। संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए। देश में आपसी संपर्क व आपसी भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सामान्य भाषा आवश्यक है। यह कार्य हिंदी करती है।

डॉ अंजन रे, निदेशक, सीएसआइआर-भापेसं ने अपने स्वागत भाषण में साहित्य व कलाओं में रुचि के लिए परिवार के वातावरण को महत्वपूर्ण बताया। इस अवसर पर हिंदी माह की गतिविधियों के रूप में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं के साथ ही कामकाज मूल रूप से हिंदी में करने वाले कर्मचारियों को भी पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का समापन जसवंत राय, प्रशासन नियंत्रक के धन्यवाद के साथ हुआ।

इस अवसर पर ऊषा वाधवा के कथा-संग्रह ‘ऐसा क्यों है’ को भी इच्छुक पाठकों को उपलब्ध कराया गया। कार्यक्रम के संचालन में राजभाषा अनुभाग के देवेन्द्र राय व तिलक कुमार का विशेष सहयोग रहा।

Key Words : Uttarakhand, Dehradun, CSIR IIP, Hindi Month, Progremme

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