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…अब अपने गांव का अस्तिव बचाने की जंग लड़ रहा पूर्व फौजी

त्रिभुवन उनियाल
पौड़ी। देश की रक्षा के बाद अपने गांव के अस्तित्व की सुरक्षा का दायित्व निभाना पूर्व फौजी श्यामप्रसाद बलूनी के लिए चुनौती बन गया है। आकाश की बुलंदियों पर अठखेलियां करते बादलों से मनुहार करते प्यासे पपीहे की कंठ-पुकार ’’सर्ग दिदा पाणि-पाणि’’की तर्ज पर श्यामप्रसाद भी गुहार लगा रहा है कि मुझे सरकार पीने को दो बाल्टी पानी मुहैया करा दे तो मैं स्वयं के जिंदा रहते अपने गांव के अस्तित्व की रक्षा करता रहूं।

कल्जीखाल ब्लाक की मनियारस्यूं पट्टी के एक उजड़ते गांव बलूनीगांव में एकमात्र सदस्य पूर्व फौजी श्यामप्रसाद बलूनी गांव को नक्शे से मिटने से रोकने की जद्दोजहद में गांव में डटा हुआ है। बलूनीगांव के लिए बनेख कस्वे से करीब 2 किमी सड़क मार्ग का निर्माण हो रहा है। मुझे सड़क नहीं पानी उपलब्ध करा दो की पूर्व फौजी की गुहार भी पपीहे की तरह अनसुनी कर दी जा रही है। बादलों का क्या जब बरसना होगा बरसेंगे पपीहा चाहे तो तब जी भर पानी गले में उड़ेल ले। इसी तर्ज पर फौजी की भी कोई सुन नहीं रहा उनका कहना है कि डेढ़-दो किलोमीटर मुख्य सड़क तक आना-जाना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं लेकिन गांव में बसागत के लिए गर्मियों में दो बाल्टी पानी तो जरूरी है। उनकी मांग है कि सरकार उन्हें पानी मुहैया करवा दे तो गांव उजड़ने से बच जाएगा। सड़क मार्ग गांव के अस्तित्व को नहीं बचा सकता कहीं ऐसा न हो कि यह सड़क गांव के अंतिम व्यक्ति के लिए पलायन का साधन बन जाए।

कभी बलूनी गांव में दर्जन भर से ज्यादा परिवार निवास करते थे। पानी की भीषण समस्या के प्रमुख कारण के चलते गांव से पलायन होता गया। कोटद्वार दिल्ली, देहरादून के बाद नजदीकी बाजार बनेख ही सही लोग पलायन कर गए। बंगाल इंजीनियरिंग के नायक श्यामप्रसाद बलूनी 1985 में सेवानिवृत होकर गांव में रहने लगे, पांच बेटियों की शादी के बाद उनका बेटा भी फौज में भर्ती हो गया पत्नी स्वर्गवासी हो गई तो श्यामप्रसाद गांव में अकेले रह गये। बलूनीगांव में 19 साल से अकेला परिवार रह रहा था और अब सात साल से पूर्व फौजी ही एक मात्र गांव का सदस्य रह गया है। उम्र भी 67 साल की हो गई है किसी तरह गांव में थोड़ा बहुत खेती-बाड़ी व बनेख में टाइमपास के लिए दुकान खोलकर फौजी अपनी जमीन से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि गांव में पानी की सुविधा हो जाए तो शायद कुछ पलायन कर चुके परिवार गांव वापस लौट आएं।

बलूनीगांव का फौजी तो अपने रहते अपने गांव का अस्तित्व बचाने की जंग लड़ रहा है लेकिन पौड़ी जिले में सैकड़ों गांव ऐसे भी हैं जो गैर-बसागत होने के मुकाम पर हैं। कल्जीखाल ब्लाक की मनियारस्यूं पट्टी का ही एक और गांव चौंडली उजड़े एक साल हो गया है। चौंडली के बृद्ध 76 बर्षीय प्रेमसिंह गांव छोड़कर पलायन कर गए हैं। पौड़ी जिले का एक और गांव है कोट ब्लाक का बौंडुल जहां सिर्फ दो महिलाए पुष्पा देवी 63 बर्ष और अनीता देवी 66 बर्ष निवास करती हैं। दोनों ही महिलाओं के बच्चे रोजी-रोटी के लिए पलायन कर चुके हैं।

सांख्यिकी विभाग के आकड़ों को टटोला जाए तो गढ़वाल मंडल में गैर आवाद हो चुके 664 गांव में पौड़ी जिला अग्रणी स्थान बनाए हुए है। जिले के 341 गांव गैर आवाद हो गए हैं। चौंडली, बलूनीगांव व बौंडुल की तरह सैकड़ों गांव में जनसंख्यां एक-दर्जन के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। सांख्यिकी विभाग के अनुसार गढ़वाल मंडल में 2 सौ से कम जनसंख्या वाले 4442 गांव में भी पौड़ी सबसे आगे है जहां 2303 गांव की जनसंख्या दो सौ से कम है। पौड़ी जिले में सांख्यिकी विभाग को अब जनसंख्या नापने के पैमाने में एक और कालम जोड़ने की आवश्यकता हो गई है जिसमें 50 से कम जनसंख्या वाले गांव के आंकडे़ एकत्रित किए जाने चाहिए। इस आंकड़े में भी पौड़ी जिला पूरे उत्तराखण्ड में अव्वल आएगा।

Key words : uttarakhand, Pauri, Balooni Village, migration, Problems

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