संस्कृति एवं संभ्यता

पौराणिकता, संस्कृति व अटूट आस्था का सृजन – यमुनाघाटी का डांडा देवराणा मेला

 शांति टम्टा
उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले के यमुनाघाटी में होने वाले सुप्रसिद्ध डांडा देवराणा मेले का आयोजन विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी आषाढ़ मास के 13 गते को यानि आज ही के दिन होता है। इस मेले से यमुनाघाटी के ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण उत्तरकाशी जिले के सभी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के लोग देवराणा नामक स्थान पर एकत्र होकर बाबा रुद्रेश्वर महाराज के दर्शन करते हैं।

डांडा देवराणा मेला उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती धारी कफनोल क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। इस मेले में आज भी उत्तराखंड की पौराणिक संस्कृति की झलक देखी जा सकती है। पलायन कर चुके लोगों को भी अपनी माटी व संस्कृति से जोड़े रखने के लिए यह मेला एक सशक्त माध्यम है।

मेले का आयोजन स्थान देवदार के घने जंगलों के बीच करीब दो हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित देवराणा में होता है। साल में एक बार आयोजित होने वाले इस मेले में बाबा रुद्रेश्वर महाराज के दर्शन के लिए लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। यमुना घाटी के सभी क्षेत्रों से लोग पारंपरिक परिधानों को पहनकर तांदी नृत्य के साथ मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और बाबा का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि बाबा के मोरू (मूर्ति) के साक्षात दर्शन भी मेले के दौरान होने वाले धार्मिक अनुष्ठान के दौरान होते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था है कि बाबा के दर्शन मात्र से ही हर कष्ट दूर हो जाते हैं।

यमुनाघाटी में आज भी डांडा देवराणा मेला अपने सगे सम्बंधियों व मित्रों के साथ मिलने का एक प्रतीक स्थल भी है। परंपराओं और अटूट आस्था के चलते प्रदेश के अन्य स्थानों की तुलना में यमुनाघाटी में पलायन का ग्राफ सबसे कम है। मेला स्थल धारी कफनोल क्षेत्र में अपने ईष्ट के दर्शन के लिए हर उम्र के श्रद्धालु 3 से 4 किमी पैदल पहाड़ी रास्ते से होकर गुजरते हैं।

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