संस्कृति एवं संभ्यता

(बसंत पंचमी विशेष) – सरस्वती पूजन के साथ बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है यह पर्व

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

आज एक ऐसे धार्मिक उत्सव की बात करेंगे जो अपने आप में तमाम विविधताओं के रूप में जाना जाता है । इसके आगमन से प्रकृति भी झूम उठती है, मन मयूर होने लगता है । बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले यह चंद लाइनें, ‘सब का हृदय खिल-खिल जाए, मस्ती में सब गाए गीत मल्हार । नाचे गाए सब मन बहलाए, जब बसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं। खेतों में पीली चादर लहराई, सबके घर में खुशियां भर-भर के आई।

जो सबके दिल को भायी, वही बसंत ऋतु कहलायी। जी हां हम बात कर रहे हैं बसंत पंचमी की । आज पूरे देश भर में बसंत पंचमी का उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है । प्रयागराज के संगम, वाराणसी, हरिद्वार और उज्जैन आदि में सुबह से ही श्रद्धालुओं की स्नान करने की भीड़ लगी हुई है । दान-पुण्य और स्नान का सिलसिला देशभर में पवित्र नदियों में पूरा दिन चलता रहेगा । आइए हम आपको बताते हैं बसंत पंचमी कब और क्यों मनाई जाती है, साथ ही इसका महत्व क्या है । हर साल माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है। बता दें कि बसंत पंचमी के दिन ‘विद्या की देवी सरस्‍वती’ का जन्‍म हुआ था इस दिन मां सरस्वती की पूजा का दिन भी है । इसलिए इसे ‘सरस्वती पूजन’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कई लोग प्रेम के देवता ‘कामदेव’ की पूजा भी करते हैं। किसानों के लिए इस त्‍योहार का विशेष महत्‍व है। बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं, साथ ही इस दिन से बसंत ऋतु का आगमन भी हो जाता है । यह पर्व प्रकृति का उत्सव है और यही कारण है कि बसंत ऋतु का ऋतुओं का राजा कहा जाता है । यूं तो भारत में छह ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। दरअसल यह पर्व बसंत ऋतु में पड़ता है। इस ऋतु में मौसम काफी सुहावना हो जाता है। इस दौरान न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा ठंड होती है।

बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्रों को धारण करने का विशेष महत्व माना गया है—

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी पर पीले रंग का विशेष महत्व माना गया है । मां सरस्वती को भी पीला रंग काफी पसंद है इसलिए बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा के दौरान विद्या की देवी को भी पीले रंग का वस्त्र ही चढ़ाया जाता है और साधक खुद भी पीले वस्त्र ही पहनते हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले फूल, पीले मिष्ठान अर्पित करना शुभ माना जाता है । माना जाता है कि भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है । इस दिन पीले वस्त्र पहनने और भेंट करने चाहिए। बसंत पंचमी का पावन पर्व मां सरस्वती को समर्पित है। सरस्वती को बुद्धि और विद्या की देवी माना जाता है। इस दिन ज्ञान विद्या की पूजा की जाती है । देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है । मान्यता है कि मां सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान का विस्तार होता है। साथ ही साथ उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इस दिन कई लोग गृहप्रवेश भी करते हैं। मान्यता है कि इस दिन कामदेव पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर आते हैं। इसलिए जो पति-पत्नी इस दिन भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा करते हैं तो उनके वैवाहिक जीवन में कभी मुश्किलें नहीं आती । इस दिन लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने का भी विधान है।

इस बार बसंत पंचमी पर पूरे दिन रहेगा ‘रवि योग और अमृत सिद्धि योग’—

धर्म-कर्म के हिसाब से बसंत पंचमी कई मायनों में इस बार बेहद खास है। बता दें कि इस बार बसंत पंचमी के दिन ‘रवि योग और अमृत सिद्धि योग का संयोग बना है। जिसके कारण इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है। इस अद्भुत संयोग के दौरान मां सरस्वती की पूजा करने से इंसान को दोहरा पुण्य प्राप्त होगा। पंचमी तिथि 16 फरवरी को पूरे दिन रहेगी। सुबह 6 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। बसंत पंचमी के दिन आपको माता सरस्वती की पूजा के लिए कुल 5 घंटे 37 मिनट का समय मिलेगा। आपको इसके मध्य ही सरस्वती पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मकर राशि में चार ग्रह गुरु, शनि, शुक्र और बुध एक साथ होंगे। मंगल अपनी स्वराशि मेष में विराजमान रहेंगे और यह सब मीन राशि तथा रेवती नक्षत्र के अधीन होगा। बता दें कि 13 फरवरी को गुरु बृहस्पति उदय हो चुके हैं और 17 फरवरी को शुक्र अस्त होंगे। इस लिए 16 फरवरी को विवाह करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन मुंडन, जनेऊ, ग्रह प्रवेश आदि शुभ कार्य भी की जाते हैं ।

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